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सावुनी पंच भावना.
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गुणोमां राज्य कर परमानंद भोगी था. एहवा क्षण भंगुर अने जड देहथी तें श्यो गुण पीछाणी दोस्ती राखी छे?॥१६॥
छेदन भेदन ताडना, बध बंधन दाह। पुद्गलने पुद्गल करें, तुं अमर अगाह ॥ रे जीव० ॥१७॥
अर्थः---देह उपर छेदन भेदन ताडन तर्जन वध बंधन दाह आदि जे जे वेदना थाय छे ते पुद्गलने पुद्गल करे पण तुं तो अमर अने कोइने ग्रहवा पकडवामां न आq एहवो छं तो पर पुद्गल अथिर वस्तुनो ममत्व शा वास्ते करूं
पूर्व कर्म उदये सही, जे वेदना थाय । ध्यावे आतम तिण समे, ते ध्यानी राय ॥रे जीव० ॥१८॥
अर्थः--पूर्व कर्म उदय वशे शरीर उपर जे जे वेदना थाय ते समय जे जीव आत्मानो अक्षय अवेदक गुण ध्याय तेज ध्यानी राजा समजवो ॥ १८ ॥
ज्ञान ध्याननी वातडी, करणी आसान। अंत समे आपद पड्यां, विरला करे ध्यान ॥ रे जीव०॥ १९ ॥
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