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सावनी पंच भावना.
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रहेला पदार्थोंमां विखरी रह्यो छे पण तने नयी. माटे शुद्धात्मगुणमां अने शुद्धात्म प्रीति कर के जेथी अनंति प्रीत ताहरी ताहरामां थशे ॥ ११ ॥
हितकारी थतो तत्त्व दातारमा
ज्यां लगे तुज ईण देहथी,
छे पूरव संग |
त्यां लगे कोटि उपायथी,
नवि थाये भंग ॥ रे जीव० ॥ १२ ॥
अर्थः-- ज्यांसुधी आ देहथी ताहरो पूर्ण कर्म वशे संग छे त्यांसुधी क्रोडो उपाययी पण ए देहनो भंग थवानो नथी अने तुं तो क्षायिक अभंग अंगवालो छं ॥ १२ ॥
आगल पाछल चहुं दिने,
जे विणसी जाय । रोगादिकथी नवि रहे,
कोध कोटि उपाय || रे जीव० ॥ १३ ॥
अर्थः-- देह तो आगर पाछल चार दिने निश्चय विनाश पासवावाली छे अने रोगादि वालवा कोडो उपाय करवायी पण रहे एवी नयी ॥ १३ ॥
अंते पण एने तयां, थाये शिव सुख । ते जो छूटे आपथी,
तो तुज इयो दुःख ॥ रे जीव० ॥ १४ ॥
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१२.
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