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वडी साघु वंदना.
पचास लाख कोड सार तिहां असंख्य केवली, जेह यया मुनिवर तेह प्रणमुं असुभ दुरमति निरदली. ॥३॥
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ढाल ||
अजित जिणेसर ने गणधरूं, घुर प्रणमुं सहसेण सुहंकरूं, प्रणमु प्रहसम फगुसाहुणी, हरखस्युं बांदु सगर महामुनि. ऊलाली ॥
महामुनि सगर तीस लाखे कोड अंतरे जे थया, केवली मुनिवर तेह प्रणमुं दोय कर जोडी सया; श्री संभव चारु मुनिवर चित समायिकगुण रमु, लाख दसेही कोडसागर अंतरे सिद्ध सहुं नमुं ॥ ४ ॥ ढाल ॥
श्री अभिनंदन प्रणम् गुणपति, वैरनाग मुनि अजयासती; सागर लाखे नव कोड अंतरे, केवली थया वंदीये शुभपरे. ऊलाली ||
सुभपरे सुमत जिणेसर गणधर चमरकास विअजया, नेऊ सहस कोड सागर विच नमुं जे सिद्ध थया; श्री पद्मप्रभु सीस नांमी सुझीये ऋषी वंदीये, साहुणी तेरई नामे प्रणम्यां दुःख दूर निकंदीये. ॥ ५ ॥
ढाल ||
कोड सहस नयसागर विच वली, मणमुं मुनिवर जे थया केवली; श्री सुवास जिणविध गुणदधि प्रणमुं, सीमा समणी गुणनिधि. ऊलाठी ॥
गुणनिधि नवसे कोडसागर अंतरे जे केवली, तेह प्रणमुं भावस्युं ए दुःख जावे सहू टली;
ફર્
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