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वडी साधु वंदना.
श्री चंद्रप्रभुदीन गणधर सती समणा ध्याईये, नेउं सागर कोड अंतरे केवली गुण गाईये.
॥ढाल ५ मी॥ सफल संसार अवतार ए हु गिणुं ॥ए देशी॥ सुविधि जिणेसर मुनीवरा ए,
साहुणी वंदिये चित्त उछाह ए; अंतरे कोड नव सागर सह जिहां,
कालिकसूत्र नी वीह भाष्यो तिहां. ॥१॥ स्वामी शीतल जिण साधु आणंद ए,
सती सुलसा नमु चित्त आणंद ए; एककोड सागर तणो अंतरो कह्यो,
एकसो सागर ऊणो कर संगृह्यो. ॥२॥ सहस छावीस साठ लाख उपरे,
का लेकसवनी छेद ईण अंतरे; श्री श्रेयांस मुनि गोथ वधाईये,
धारणी साहुणी कले वर्णवी चित्त लाईये. ॥३॥ पूर्व भव गुरु सावु कहु संभूतए,
वीस नंदी वली सुगुण संयुत ए; अचल मुनिधर नमुं पढम हलधरा ए,
बंधव नृप केसव सीरधरा ए. ॥४॥ चोपन सागर वीच थया केवली,
वंदीये सूत्रनी व्रीहभाष्यो वली; इंम विछेद विच सात जिण अंतरे,
जाणीये शांति जिणवर लखे इणपरे. ॥५॥
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