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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वडी साधु वंदना. ९३.३ चोवीस जिन तीर्थ अंतर, क्रोड अनंत हुवा मुनि सिद्धके; कर जोडी प्रणमुं प्रातसम, नाम कहुं हवे जे परसिद्ध के. त्रि०॥१२ ।। ढाल ४ थी । राग धन्याश्रीनी देशी ॥ प्रहसम प्रणमुं ऋषभ जिनेस, श्रीमरुदेवा सिद्धसोहंकरूं, चौरासी गणधार शीरोमणी, ऋषभसेन मुनिवर प्रणमु सुखमणी ॥ १ ऊलाली ॥ सुखमणी प्रणम् बाहुबलमुणी सहस चौरासि मुनि, वीस सहस प्रणमु केवली वली सिद्ध थया त्रिभुवन धणी; तीन लाख समणीवर नमु नित नाम ब्राह्मीसुंदरी, सहस चालीस केवली वली नमु श्रमण चित्त धरी ॥१॥ ढाल || आरिसेघर भरतनरेसरु, ध्यान बलेकर केवल लहिवरु; सहसदसे संघाते नरपती, विचरे जगमे प्रणमं शुभमति. ऊलाली ॥ सुभमति जंबुद्वीपे पन्नती वखाणीये, भरतनी पेरे बल केवल खेत्र इव जाणीये; वंदीये चक्री इखौ मुनि भावसु नित मनरली, हवे भरत पाटे आट अनुक्रम वंदीए नृप केवली. ॥२॥ ढाल || श्रीआई जसमहाजस केवली, अइवल महीवल तेजवीरिये वली; कीरत विरीये दंड वीरिये घ्याईये, जलदिरीय मुनिनाव गुण गाईये. ऊलाली ॥ गाईये ताणां (घणा) अंग मुनिवर एह भाषए संजति, श्री ऋषभ ते बले अजित अंतर हवे सुणो कहु सुभमति; ર For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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