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वडी साधु वंदना.
९३.३
चोवीस जिन तीर्थ अंतर, क्रोड अनंत हुवा मुनि सिद्धके; कर जोडी प्रणमुं प्रातसम, नाम कहुं हवे जे परसिद्ध के. त्रि०॥१२
।। ढाल ४ थी । राग धन्याश्रीनी देशी ॥
प्रहसम प्रणमुं ऋषभ जिनेस, श्रीमरुदेवा सिद्धसोहंकरूं, चौरासी गणधार शीरोमणी, ऋषभसेन मुनिवर प्रणमु सुखमणी ॥ १ ऊलाली ॥
सुखमणी प्रणम् बाहुबलमुणी सहस चौरासि मुनि, वीस सहस प्रणमु केवली वली सिद्ध थया त्रिभुवन धणी; तीन लाख समणीवर नमु नित नाम ब्राह्मीसुंदरी, सहस चालीस केवली वली नमु श्रमण चित्त धरी ॥१॥
ढाल ||
आरिसेघर भरतनरेसरु, ध्यान बलेकर केवल लहिवरु; सहसदसे संघाते नरपती, विचरे जगमे प्रणमं शुभमति. ऊलाली ॥
सुभमति जंबुद्वीपे पन्नती वखाणीये,
भरतनी पेरे बल केवल खेत्र इव जाणीये;
वंदीये चक्री इखौ मुनि भावसु नित मनरली, हवे भरत पाटे आट अनुक्रम वंदीए नृप केवली. ॥२॥ ढाल ||
श्रीआई जसमहाजस केवली, अइवल महीवल तेजवीरिये वली; कीरत विरीये दंड वीरिये घ्याईये, जलदिरीय मुनिनाव गुण गाईये. ऊलाली ॥
गाईये ताणां (घणा) अंग मुनिवर एह भाषए संजति, श्री ऋषभ ते बले अजित अंतर हवे सुणो कहु सुभमति;
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