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अध्यात्मगीता.
त्मिक सुख अनुभवे छे, पोताना परिणामिक भावे वर्ते छे. अप्रयासी परिणामे रह्या छे, उपादान के० स्वज्ञानादि अनंतगुण कारणरूप प्रगट्या छे अने अनेकज्ञेय पदार्थ जाणवा देखवारूप पर्यायनो उत्पाद व्यय समये थइ रह्यो छे, ते कार्य पोताना आत्मस्वरूपने विषे निवास कर्यो छे एटले ए त्रणे एकतापणे परिणमे छे. शुफ के० निर्मळ च्यार निक्षेपे करी युक्त छे सिफ एहवो नाम त्रणेकाले एकरूप शाश्वतो वर्ते छे १ अने थापना सिह ते त्रिभागे शरीर प्रमाणे क्षेत्र अवगाही रह्या छे २ द्रव्य सिफ ते सिफतादि गुणरूप छतां पर्याय वस्तुरूप प्रगट्या छे ते द्रव्य सिफ़ ३ सामर्थ्य पर्याय प्रवर्तनारूप अनंतो धर्म प्रगट्यो तेणे करी नव नवा ज्ञेयनी वर्तनारूप पर्यायनो उत्पाद व्यय समये २ अनंतो थइ रह्यो छे, तेणे सिझ अनंतो सुख भोगवे छे, ते भाव सिफ४ ए च्यार निक्षेपे करी सदा रक्त प्रवर्ते छे. आत्मिक आनंदसुख भोगवे छे, केवलनाणी के० एहवा सिफ्नो स्वरूप प्रत्यक्षपणे केवळज्ञानी जाणे देखे अने सिफ परमात्माने अनंतगुणना समूह प्रगट्या छे तेहने विषे अनंतो सुख भोगवे छे, ते केवळज्ञानी गम्य छे, पण छद्मस्थ मुनिना जाणवामां न आवे. ॥ ४२ ॥
एहवि शुद्ध सिद्धता करण इहा । इंद्रिय सुख थकी जे निरीहा ॥ पुद्गली भावना जे असंगी। ते मुनि शुद्ध परमार्थ रंगी ॥४३॥
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