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श्री सहस्रकूट जिनप्रतिमा स्तवन.
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अथ श्री सहस्रकूट (१०२४) जिनप्रतिमा स्तवन.
देशी रसीयानी. सहस्रकूट जिन प्रतिमा वंदीये, मनपरी अधिक जगीस विवेकी सुंदर मूरति अति सोहामगी, एकसहसने चोवीस. वि० सह.
(ए टेक) १॥ अतीत अनाग ने वर्तमाननी, वय चोवीसी हो सार विवेकी; बोतेर जिनवर एकएक खेत्रमें, प्रणमीजे वारंवार. वि० सह० २॥ पांच भरत वळी एरवत पांचभे, सरखी रीत समाज विवेकी; दश क्षेत्रे थइ थाए सातसें, वीस अधिक जिनराज. वि० सह० ३॥ पंचविदेहे जिनवर शाट सो (१६०) उत्कृष्ट एहीज टेव विवेकी; जिन समान जिन प्रतिमा ओळखी, भक्ती कीजे हो सेव. वि०४॥ पंचकल्याणक जिन चोवीसना, वीसासो (१२०) तेहीजथाय विवेकी ते कल्याणक विधि| साचत्री, लाभ अनंत कहाय. वि० सह०५॥ पंच विदेहे हो हमणां विहरता, वीसअछे अरिहंत विवेकी; शाश्वताजिन रूपभानन आदिदे, चार(४) अनादि अनंत. वि० ६॥ एकसहस चोवीस जिनवर तणी, प्रतिमा एकण ठाम विवेकी; पूजा करतां जनम सफल होवे, सीझे वंछीत काम. वि० ७॥ तीनकाल अढाइ द्वीपमां, केवलनाण पहाण विवेकी; कल्याणक करी प्रभु इहां सामठां, लाभे गुणमणी खांण. वि० ८॥
सहसकूट सिद्वाचल उपरें, तीमहिज धरणी विहार विवेकी; । तेथी अद्भुत ए छे स्थापना, पाटण नगर मझार. वि० ९॥ १-७२०
६ पाटणमां तांगडीयावाडामां सहस्रफणा पार्श्वनाथजी २-१६० ३-१२० प्रमुख सात देहेरासरजी छ तेमां १ एक सहस्रकूट छे.
४- २०
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