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कुंभ स्थापना स्तवन.
॥ कुंभ स्थापना स्तवन ।
धरम उत्समसमै जैनपद कारण उत्तम मंगल आचरे ए, भावमंगल तिहां देव अरिहंत प्रभु एहयी परम मंगल मंगल वरे ए; तेहना नामने जाउं हुँ भामणे, खिणखिण हरख समरण करे ए, पांच कल्याणके जीम सुरपति करे, तिम जिन भक्ति भवि आदरे ए.१॥ भावमंगलतणि पुष्टता कारणें, द्रव्यमंगल भला कीजीए ए, तिहां गुणे पूर्णता इच्छता भविकजन, कुंभ थिरपूरण लीजीए ए; पदमआसन ठव्यो परम छचे ठव्यो, मंत्र पवित्रथी जपीए ए, जिनवर जिनमणि दीशि हरखभरी,हियडे पूरण कलशजथी पीये ए.२॥ माहरा नाथने परम मंगल होजो, मंगल संब चउविह भणे ए, मंगल तीर्थने मंगल चैत्यने, मंगलनेह करता भणीए; जैनशासनतणो हरख मंगल करें, तेन आनंद अति उपजै ए, चवन अवसर समे माताना गर्भमें, पूरै हरखजै संपजे ए. ३॥ तिम प्रासादनी थापना अवसरे कुंभ थापन समें हरखी ये ए, जेम संसारना मंगल करे ए तिम जिन धर्मनी वृद्धिने कारणे, श्रावक सुविधि मंगल धरे ए, परम आनंदवर धन्यता मानता गीत मंगल धरी उच्चरे ए; . देवना देवने मंगल कीजता देवचंद्र पद अनुसरे ए.
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