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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री सिद्धाचल स्तवन. सुचिपूर्ण चिदघन ज्ञानदर्शन, सिद्ध उद्योत सुभ मनें निज आत्मसत्ता शुद्ध करवा वीरजिन केवल - दिने. श्री सुविहित खरतर गच्छ जिनचंद्र सुरि साखा गुणनीलो उवझायवर श्री राजसारु, सीस पाटक सिर तीलो श्री ज्ञानधर्मसूस पाठक देवचंद्र वीनव्यो जगहितको इति चैत्रपरवाडी सिद्धखेत्रनी संपूर्ण ॥ ॥ श्री सिद्धाचल स्तवन ॥ धन धन मुनिवर जे संजमवर्याजी परिहर्या पाप अढाररे समता आदरी मुनि ममता तजीजी सम्यक् क्षमा दया भंडाररे. धन धन० ॥ १ ॥ रुषभ वंश द्रवड नृप पुत्र बेजी द्रविड अने बीजो वारिखिल्लरे भूमि निमित्ते रणरसीया थकाजी तापस संयोगे काट्यो सल्ल रे. ॥धन० ।। २ ।। संजम लीधो भट दशकोडिथीजी पुडुता सिद्धाचल गिरिशृंगरे अणसण करि निज तत्त्वे परिणम्याजी त्रिविध त्रिविध वोसिरावी संगरे ॥ धन० ॥३॥ रत्नत्रयी रमी आत्म संवरीजी ओलखी छंड्यो सर्व विभावरे प्रत्याहार करि धरी धारणाजी वलगा निर्मल ध्यान स्वभावरे ॥ धन ॥४॥ मैत्रिभाव भजी सवि जीवथीजी, करुणाभाव दुःखथी तेमरे पंच गुणीनी नित्य प्रमोदताजी, शुभ अशुभ विपाके मध्या प्रेमरे ॥धन० ॥५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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