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श्री सिद्धाचल स्तवन.
सुचिपूर्ण चिदघन ज्ञानदर्शन, सिद्ध उद्योत सुभ मनें निज आत्मसत्ता शुद्ध करवा वीरजिन केवल - दिने. श्री सुविहित खरतर गच्छ जिनचंद्र सुरि साखा गुणनीलो उवझायवर श्री राजसारु, सीस पाटक सिर तीलो श्री ज्ञानधर्मसूस पाठक देवचंद्र वीनव्यो जगहितको
इति चैत्रपरवाडी सिद्धखेत्रनी संपूर्ण ॥
॥ श्री सिद्धाचल स्तवन ॥
धन धन मुनिवर जे संजमवर्याजी परिहर्या पाप अढाररे समता आदरी मुनि ममता तजीजी सम्यक् क्षमा दया भंडाररे.
धन धन० ॥ १ ॥ रुषभ वंश द्रवड नृप पुत्र बेजी द्रविड अने बीजो वारिखिल्लरे भूमि निमित्ते रणरसीया थकाजी तापस संयोगे काट्यो सल्ल रे.
॥धन० ।। २ ।। संजम लीधो भट दशकोडिथीजी पुडुता सिद्धाचल गिरिशृंगरे अणसण करि निज तत्त्वे परिणम्याजी त्रिविध त्रिविध
वोसिरावी संगरे ॥ धन० ॥३॥ रत्नत्रयी रमी आत्म संवरीजी ओलखी छंड्यो सर्व विभावरे प्रत्याहार करि धरी धारणाजी वलगा निर्मल ध्यान स्वभावरे
॥ धन ॥४॥ मैत्रिभाव भजी सवि जीवथीजी, करुणाभाव दुःखथी तेमरे पंच गुणीनी नित्य प्रमोदताजी, शुभ अशुभ विपाके मध्या प्रेमरे
॥धन० ॥५॥
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