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वीरजिनवरनिर्वाण.
छठतपे निशी पाछलीजी करिया जुजी वीर्य, योगरोध बादर करिजी; रोध्यो सूक्ष्म वीर्य. जिने ॥४॥ सकल प्रदेश घन करिजी चरमविभागावगाह, प्रकृति बहोत्तर खेखेजी, कृत तेर प्रकृतिनो दाह जिने० ५॥ पर्यकासन शिव लघुजी स्वाति नक्षत्रे स्वाम, नागकरण दशैं करूजी पूर्णानंदि धाम. जिने ॥६॥ अफुसमाणगतिथी लडोजी एकसमे लोगंत, पूर्व प्रयोग अबंधनेजी उर्ध्वगतिने तंत. जिने ॥ ७ ॥ अवगाहना कर च्यारनीजी सोलह अंगुलमाय सर्व प्रदेश गुणपज्जवाजी तुल्य प्रमाण समाय. जिने ॥८॥ सर्व शक्ति निज कार्य जी करता वर निःप्रयास, सादि अनंतपणे कयुजी, आतमशक्ति विलास. जिने०॥९॥ विस वरस गृहवासमांजी, बार वरस मुनिभाव, तेर पक्ष अधिकुं तप्याजी, तप शिवसाधन दाव. जिने० १०॥ विचर्या परमेश्वर पदेजी, तिस वरस किंचूण, भाव यथारथ उपदिश्याजी, नयनिक्षेपे पूर्ण. जिने ॥११॥ पर परसंग सह तजीजी, अनाहारि अशरीर, अचल अक्षय अमूर्तताजी व्यक्ति शक्ति धर धीर. जिने०१२॥ वीरप्रभु निजपद लघुजी परमानंद अबाध,
अविनाशी संपूर्णताजी परिणति भाव अगाध. जिने० १३॥ ॥ ढाल ॥ प्रभु तुं स्वयंवुद्ध सिद्धो अलुडो । ए देशी ॥ प्रभु तुं अनंतो महंतो प्रसंतो, तुं प्रभु कर्मनाशन कृतंतो; पूर्ण आनंद आस्वादवंतो, प्रभु तुं थयो सिद्धि लच्छि सुकंतो.
॥ १ ॥ प्रभु०॥
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