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अष्टप्रकारी पूजा..
अज्ञान नासे ॥ निजघटे ज्ञानज्योति विकासे, तेहथी जगतना ; भाव भासे ॥३॥
॥ भविकनिर्मलबोधविकाशकं, जिनगृहे शुभदीपक दीपनम्॥ सुगुणरागविशुद्धिसमन्वितं, दक्तु भावविकाशकृते जनाः ॥५॥ ॐ ही परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेंद्राय दीपं यजामहे स्वाहा ॥५॥ इति दीपपूजा ॥
॥ अथ षष्ठाक्षत पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ।। अक्षत अक्षत पूरशु, जे जिन आगे सार ॥ स्वस्तिक रचतां विस्तरे, निजगुण भर विस्तार ॥१॥ ढाल॥ उज्जल अमल अखंडित, मंडित अक्षतचंग ॥ पुंजत्रय करो स्वस्तिक, आस्तिक भावे रंग ॥ निज सत्ताने सन्मुखं, उन्मुख भावे जेह ।। ज्ञानादिक गुण ठावे, भावे स्वस्तिक एह ॥२॥ चाल ॥ स्वस्तिक पर जिनप आगे, स्वस्ति श्रीभद्र कल्याण जागे । जन्मजरामरणादि अशुभ भागे, नियत शिवशर्म रहे तासु आगें ।। ३ ।।
॥ सकलमंगलकेलिनिकेतनं, परममंगलभावमयं जिनम् ॥ श्रयत भव्यजना इति दर्शयत्, दधतु नाथ पुरोऽक्षतस्वस्तिकम् ।। ६॥ ॐ ही परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमजिनेंद्राय अक्षतान् यजामहे स्वाहा ॥६॥ इति अक्षतपूजा ॥
॥ अथ ससम नैवेद्यपूजा प्रारंभः॥ ।। दोहा ॥ सरस शुचि पकवान भर, शालदाल वृतपूर ॥ .
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