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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टप्रकारी पूजा. धरे नैवेद्य जिन आगले, क्षुधादोष तसु दूर ॥ १ ॥ ढाल || लपनश्री वरचेवर, मृदुतर मोतीचूर ॥ सिंहकेसरिया से वैया, दलिया मोदकपूर ॥ साकर वाख सिंगोडा, भक्तव्यंजन वृत सद्य ॥ करो नैवेद्य जिन आगले, जिम मिले सुख अनवद्य ॥२॥ चाले ॥ ढोवतां भोज्यवर भाव त्यागे, भविजना निज गुण भोज्य मागे ॥ अम्ह भणी अम्हतणो सरूप भोज्य, आपजो तातजी जगतपूज्य ॥ ३ ॥ ॥ सकलपुद्गलसंगविवर्जनं, सहजचेतनभावविलासकम् ॥ सरसभोजननव्यनिवेदनात्, परमनिवृत्तिभावमहं स्पृहे ॥ ७ ॥ ॐ ही परमपरमात्मने अनंतानंतञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेंद्राय नैवेद्यं यजामहे ॥ ७ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ ॥ अथाष्टम फलपूजा प्रारंभः॥ ॥ दोहा ॥ पक्व बिजोएं जिन करे, ठवतां शिवपद देइ ।। सरस मधुर शुभ फल घणां, इह जिन भेट करेइ ।। १ ।। ढाल ॥ श्रीफल कदली सुरंगा, नारंगी आंचा सार ॥ जंबीर अंजीर दाडिम, करणा षटबीज सफार ॥ मधुर सुस्वादिक उत्तम, लोके आनंदित जेह । वरण गंधादिके रमणीक, बहुफल ढोवे। तेह ॥ २ ॥ चाल । फलभरे पूजनां जगतस्वामी, मनुजगति वेलि होय सफल पामी ॥ सकल मुनि ध्येयगत भेद रंगे, ध्यावतां फलसमापति प्रसंगे ॥ ३ ।। ॥ कटककर्मविपाकविनाशनं, सरसपक्वफलव्रजढौकनम् ॥ विहितमोक्षफलस्य प्रभोः पुरः, कुरुत सिद्धिफलाय महाजनाः ॐ ह्री परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवा For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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