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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૮૬ अष्टमकारी पूजा. वारणाय श्रीमज्जिनेंद्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा || ३ || इति पुष्पपूजा || ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ कृष्णागरमृगमद तगर, अंबर तुरुक लोबान ॥ मेलि सुगंध घनसार घण, करो जिनने 'धुपधाण ॥ १ ॥ || ढाल || धूपवटी जिम महमहे, तिम दहे पातकवृन्द || अरति अनादिनी जावे, पावे मन आणंद || जे जिन पूजे चूपें भव कूपें फिरि तेह | नावे पावे ध्रुवघर आवे सुरक अछेह || २ || चाल || जिन घर वासतां धूपपरें, मिच्छत्तदुर्गंधता जाइ दूरे ॥ धूप जिम सहज ऊर्द्धग स्वभावे, कारका उच्चगति मात्र पावे || ३ || ॥ सकलकर्ममहेंधनदाहनं, विमलसंवरभावसुधूपनम् ॥ • अशुभपुद्गल संगविवर्जितं, जिनपतेः पुरतोऽस्तु सुहर्षतः ॥ ४ ॥ ॐ ह्री परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमज्जिनेंद्राय धूपं यजामहे स्वाहा ॥ ५ ॥ इति धूपपूजा ॥ ॥ अथ पंचम दोपपूजा प्रारभ्यते ॥ ॥ दोहा ॥ मणिमय रजत ताम्रप्रमुख, पात्र करी वृतपूर ॥ वर्त्ती सूत्र कौसुंभनी, करो प्रदीप सनूर ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ मंगलदीप वधावो गावो, जिन गुणगीत || दीपतणी जिम आलिका, मालिका मंगलनीत ॥ दीपतणी शुभ ज्योति द्योति, जिनमुखचंद || निरखीहरखो भविजना, जिम लहो पूर्णानंद ॥ २ ॥ चाल ॥ जिनगृहे दीपमाला प्रकासे, तेहथी तिमिर ३६ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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