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अष्टप्रकारी पूजा.
सकलसंताप निवारण, ठारण सहु भविचित्त ॥ परम अनीहा अरिहा, तनु चरचो भविनित्त । निजरूपें उपयोगी, धारी जिनगुण गेह ॥ भावचंदन सुह भावथी, टाले दुरित अछेह ॥२॥ चाल ॥ जिन तनु चरचतां सकल नाकी, कहे कुग्रह उष्णता आज थाकी ॥ सकल अनिमेषता आज म्हांकी, भव्यता अह्म तणी आज पाकी ॥३॥
॥ सकलमोहतमिस्रविनाशनं, परमशीतलभावयुतंजिनम् ॥ विनयकुंकुमदर्शनचंदनैः, सहजतत्त्वविकाश कृतेऽचये ॥२॥ ॐ ह्री परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमजिनेंद्राय चंदनं यजामहे स्वाहा ॥२॥ इति चंदनपूजा ॥
॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ शतपत्री वरमोगरा, चंपक जाइ गुलाब ॥ केतकि दमणो वोलसिरी, पूजो जिन भरिछाब ॥ १ ॥ ढाल ॥ अमल अखंडित विकसित, शुभसुमनी घणी जाति ॥ लाखीणो टोडर टवो, अंगी रची बहु भांति ॥ गुणकुसुमें निज आतमा, मंडित करवा भव्य ॥ गुणरागी जडत्यागी, पुष्प चढावो नव्य ॥२॥ चाल ॥ जगधणी पूजा विविधफूलें, सुरवरा ते गणे क्षण अमूलें ॥ खांति धरि मानवा जिनप पूजे, तसु तणां पाप संताप ध्रुजे ॥३॥
॥विकचनिर्मलशुद्धमनोरमै, विशदचेतनभावसमुद्भवैः॥ सुपरिणामप्रसूनघनैनवैः परमतत्त्वमयं हियजाम्यहम् ॥३॥ ॐ ह्री परमपरमात्मने अनंतानंतज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनि
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