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एकवीशप्रकारी पूजा.
१९ नृत्यपूजा ॥
॥दोहा॥ ॥ मूकी शंक संसारनी, जिनपति आगे जत्ति ॥ करी नृत्य सूर्याभ परें, तस नहीं भवभय नृत्य ॥ ५९ ॥ ढाल ।। भूचर खेचर अमरवर, किन्नरी नरी शुभचित्त ॥ नाचे माचे जिनगुणे, सांचे सुकृतवित्त ॥ योग अवचक एहथी, तेहथी जिनपद हेतु ॥ चउगइ गमणनिवारण, तारण भवजलसेतु ॥ ६०॥ काव्यम् ॥ जेह निजयोगगति सहजरंगें, फोरवे अमृतानुष्ठान संगें ।। अतुलगुणतान न चूके असंगें, भावनत्यपूजना एह ढंगें ॥ ६१ ॥ इति एकोनविंशतिनृत्यपूजा ॥
२० स्तुतिपूजा ॥
॥दोहा॥ ॥ व्याकरण काव्य अलंकृति, तर्क छंद अपभ्रंश ।। दोष न दो पं स्तुति करे, स्तुतिपूजा गुणसत्थ ॥ ६२ ॥ ॥ ढाल ॥ स्वरपदवर्णविराजति, भाजति उक्ति अनूप ॥ अतिशय धारी उपगारी, अह तस शुद्ध स्वरूप ॥ संपद निक एम स्तवतो, ठवतो जिनगुण चित्त ॥ सुरनर किन्नर थवे तस, एणीहश कवें नित्त ।। ६३ ॥ काव्यम् ॥ जेह षटद्रव्य जिन आण भाखे, शुद्धस्याद्वादनी टेक राखे ॥ अवर एकांतता दूर नाखे, भावस्तुति पूजना एह आखे ॥ ६४ ।। इति विंशतिस्तुति पूजा ॥ २० ॥
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