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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८२.. एकवीशप्रकारी पूजा. १९ नृत्यपूजा ॥ ॥दोहा॥ ॥ मूकी शंक संसारनी, जिनपति आगे जत्ति ॥ करी नृत्य सूर्याभ परें, तस नहीं भवभय नृत्य ॥ ५९ ॥ ढाल ।। भूचर खेचर अमरवर, किन्नरी नरी शुभचित्त ॥ नाचे माचे जिनगुणे, सांचे सुकृतवित्त ॥ योग अवचक एहथी, तेहथी जिनपद हेतु ॥ चउगइ गमणनिवारण, तारण भवजलसेतु ॥ ६०॥ काव्यम् ॥ जेह निजयोगगति सहजरंगें, फोरवे अमृतानुष्ठान संगें ।। अतुलगुणतान न चूके असंगें, भावनत्यपूजना एह ढंगें ॥ ६१ ॥ इति एकोनविंशतिनृत्यपूजा ॥ २० स्तुतिपूजा ॥ ॥दोहा॥ ॥ व्याकरण काव्य अलंकृति, तर्क छंद अपभ्रंश ।। दोष न दो पं स्तुति करे, स्तुतिपूजा गुणसत्थ ॥ ६२ ॥ ॥ ढाल ॥ स्वरपदवर्णविराजति, भाजति उक्ति अनूप ॥ अतिशय धारी उपगारी, अह तस शुद्ध स्वरूप ॥ संपद निक एम स्तवतो, ठवतो जिनगुण चित्त ॥ सुरनर किन्नर थवे तस, एणीहश कवें नित्त ।। ६३ ॥ काव्यम् ॥ जेह षटद्रव्य जिन आण भाखे, शुद्धस्याद्वादनी टेक राखे ॥ अवर एकांतता दूर नाखे, भावस्तुति पूजना एह आखे ॥ ६४ ।। इति विंशतिस्तुति पूजा ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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