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एकवीशप्रकारी पूजा. भोज्य, आपजो तातजी जगत पूज्य ॥ ४० ॥ इति द्वादशनैवेद्यपूजा ॥ १२ ॥
१३ जलपूजा ॥
॥ दोहा ॥ ॥ शुभरुचि शुचिनिर्वाण, पूर्ण कलश भरि तोय ॥ जिनपति आगल ढोकतां, गततृष्णा भवि होय ॥४१॥ ढाल ॥ जगजीवन गुणपावन, निर्मल शीतल जेह ॥ उदक रयणे जिन पूजतां, न रहे पातक रेह ॥ अतिभीष्में भवग्रीष्में, नवि पीडाये तेह ।। सुखभर शिवघर वासवा, आदिमंगल एह ॥ ४२ ॥ काव्यम् ॥ निम्मले समजले जेह प्राणी, भरी पात्र श्रद्धान ते सुगुणखाणी ।। एकता जिनगुणे देवदेवा, भजे भावथी जलतगी एह सेवा ॥ ४३ ॥ इति त्रयोदश जलपूजा ॥१३॥
१४ वस्त्रपूजा ॥
॥दोहा॥ ॥ चीनांशुक मुखमल अमल, जरबाफी शुद्ध पट्ट ॥ सरस सुकोमल मूल घणां, वस्त्रपूज गहगट्ट ॥ ४ ॥ ढाल ॥ वस्त्रजोडी मन कोडें, थापो जिनद्रगमाग ॥ गतशोचे उल्लोचे, अह जिनमंदिर राग ॥ शोभावो ध्वज ठावो, चावो करी बहु मान ॥ वस्त्रपूजा हरे भविकनां, दुःख शीतादि अमान ॥ ४५ ॥ काव्यम् ॥ भावथी वस्त्रयुग जे परिन्ना, ते धरे जिनतणी आण लीना ॥ शिशिर जड आवें मोहग्रीष्में,
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