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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकवीशप्रकारी पूजा. दाडिम, करणा षटबीज सफार ॥ मधुर सुस्वादिक उत्तम, लोके अनिंदित जेह ।। वर्ण गंधादिकें रमणिक, बहु फल ढोके तेह ॥ २७ ॥ काव्यम् ॥ फल भरें पूजतां जगत स्वामी, मनुज गति वेलि होय सफल पामी ॥ सकल मुनिध्येय गतभेद रंगें, व्यावतां फल समाति प्रसंगें ॥ २८ ॥ इत्यष्टमफलपूजा ॥८॥ ९ अक्षतपूजा ॥ ॥हाल॥ ॥ अक्षत अक्षत पूरशं, जे जिनआगे सार ॥ स्वस्तिक रचतां विस्तरे, निज गुण भर विस्तार ॥ २९ ॥ ढाल ॥ उज्ज्वल अमल अखंडित, मंडित अक्षत चंग ॥ पुंजत्रयी करो स्वस्तिक, आस्तिक भावे रंग ।। निज सत्ताने सन्मुख, उन्मुख भावे जेह ॥ ज्ञानादिकगुण ठावे, भावे स्वस्तिक एह ॥३०॥ काव्यम् ॥ स्वस्तिक पूरतां जिनप आगे, स्वस्ति श्री भद्रकल्याण जागे ॥ जन्मजरामरणादि अशुभ भांगे, नियति शिवशर्म रहे तास आगें ॥ ३१ ॥ इति नवमाक्षतपूजा ॥९॥ १० पत्रपूजा ॥ ॥दोहा॥ ॥ अमल अखंडित अग्रयुत, शुभ संख्यायें पत्त ।। जिणकरपत्ते पत्त भवि, ठवतां बहुगुण पत्त ॥ ३२ ॥ ढाल ॥ वि श्वगुणाकार नागर, आदर धरी ग्रहे जास ॥ भोजन उत्तर देवे, लेवे तस मुख वास ॥ तेह सुपत्तें पूजतां, पूजक वाधे नूर ॥ अहमरुवादिकपत्ते, विभत्ति भत्तें पूर ॥३३॥ काव्यम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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