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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकवीशप्रकारी पूजा. सुगंध घनसार घण, करो जिनने धूप धाण ॥ २० ॥ ढाल ॥ धूप घटी जेम महमहे, तेम दहे पातकवृंद ॥ अरति अनादिनी जावे, पावे मन आणंद ॥ जे जिन पूजे धूपें, भवकूपें फरी तेह ॥ नावे पावे वृष घर, आपे सुख अच्छेह ॥ २१ ॥ काव्यम् ॥ जिन वर वासतां धूप पुरे, मित्थत दुर्गधता जाय दूरे ॥ धूप जिम सहज ऊर्ध्वग स्वभावे, कारका उच्चगति भाव पावे ॥ ३२ ॥ इति षष्ठधूपपूजा ॥ ६ ॥ ७ दीपपूजा ॥ ॥दोहा ॥ ॥ मणिमय रजत ताम्रप्रमुख, पात्र भरी वृत पूर ॥ वृत्ति सूत्र कौसुंभनी, करो प्रदीप सनूर ॥ २३ ॥ ढाल ।। मंगलदीप वधावो, गावो जिनगुण गीत ॥ दीप तणी जेम आलिका, मालिका मंगल नीत ॥ दीपतणी शुभ ज्योति, द्योतित जिनमुख चंद ॥ निरखी हरखी भविजना, जेम लहो पूर्णानंद ॥ २४ ॥ काव्यं ॥ जिनगृहे दीपमाला प्रकाशे, तेहथी तिमिर अज्ञान नासे । निज घटे ज्ञान ज्योति विकासे, जेहथी जगतणा भाव भासे ॥२५॥ इति सप्तमदीपपूजा ॥७॥ ८फलपूजा ॥ ॥ दोहा॥ ॥ पक्क बीजोरुं जिनवरें, टवतां शिवफल देय ॥ सरस मधुर शुभ फल घणां, इह जिन भेट करेय ॥ २६ ॥ ढाल ॥ श्रीफल कदली सुरंगा, नारिंग आंबां सार ॥ जंबीर अंजिर For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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