________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
एकवीशप्रकारी पूजा. गिरि जंबुदीवो, अम तणा नाथ जीको तुं जीवो ॥ ७ ॥ इति प्रथम स्नात्रपूजा ॥ १ ॥
२ विलेपनपूजा ॥
॥दोहा॥ । बावना चंदन कुंकुमें, मृगमदने घन सार ।। जिनतनु लेपे तस टले, मोह संताप विकार ॥८॥ ढाल । सकल संताप निवारण, ठारण सवि भवि चित्त ।। परम अनीहा अरिहा, तनु चरचो भवि नित्य ।। निज रूपें उपयोगी, धारी जिनगुण गेह ॥ भाव वंदन सुहभावथी, टाले दुरित अछेह ॥९॥ काव्यम् ॥ जिनतनु चरचतां सकल नाकी, कते कुग्रह उष्मता आज थाकी ।। सकल अनिमेषता आज माकी, भव्यता अम तणी आज पाकी ॥१०॥ अथ द्वितीयविलेपन पूजा ॥२॥
३ भूषणपूजा ॥
॥ दोहा ।। ॥ तिलक मुकुट कुंडल झुगल, अंगद कंठी हार ॥ भूषणभूषित जिनतनु, करी पामो भवपार ॥ ११ ॥ ढाल | मणि मुगताफल हीरला लालडी पाच पीरोज ।। नीलवी विद्रुम पुष्करें, लसणीया लहें बहु मोज ॥ कनकजडित वर भूषणे, भूषित जिन वर देह ॥ साधक धर्म जगायवा, अतिशय संपद एह ॥ १२ ॥ काव्यम् ॥ शोभता भूषण देखि बीजे, जडमयी आतमा स्वगुण छीजे ॥ अविकारी जिनतणे देखी एह, भवि लहे तत्त्व आणंद रेह ॥ १३ ॥ इति तृतीय भूषणपूजा.।। ३ ।।
For Private And Personal Use Only