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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकवीशप्रकारी पूजा. ८७३ ॥अथ श्रावकगुणोपरि एकवीशप्रकारी प्रारंभः ॥ ॥प्रथमस्नात्रपूजाप्रारंभः॥ ॥दोहा॥ ॥ स्वस्तिश्री सुख पूरवा, कल्पवेली अनुहार ॥ पूजा भक्ति जिननी करो, एकवीश भेय विस्तार ॥१॥ ( पाठांतरें ) विधिपूर्वक विस्तार ॥१॥ स्नात्र विलेपन भूषणं, पुष्प वास धूव दीव ।। फल अक्षत तेम पत्रनी, पूग नैवेद्य अतीव ॥२॥ उदक वस्त्र चामर तथा, छत्र वाद्य गीत जाण ॥ नृत्य स्तुति जिनकोशनी, वृद्धि ए एकविश ठाण ॥ ३ ॥ शुचितनु तैलजलादिके, पहेरी चीवर सार ॥ पीठत्रिकोपरि जिनठवी, जिनआणा शिर धार ॥ ४॥ गंगा मागध क्षीरनिधि, औषधिमिश्रित सार ।। कुसुमें वासित शुचिजलें, करो जिनस्नात्र उदार ॥ ५॥ शुभ मणिकनकादि तरती महीनानी १ स्नात्रपूजा ॥ ॥ ढाल ॥ सूरती महीनानी देशी॥ । मणिकनकादिक अड विध, करी भरी कलश सफार ।। शुभरुचि जे जिनवर न्हवे, तस नहिं दुरित प्रचार ॥ मेरुशिखर जेम सुखर, जिनवर न्हवण अमान ।। करता वरता निजगुण, समकित वृद्धि निदान ॥ ६ ॥ काव्यम् ॥ हर्ष भरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आशीष भावे ।। जिहां लगे सुर 110 For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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