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नवपद पूजा.
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चेतन, सकल सिफि अनुसरे ।। अक्षय अनंत महंत चिद्धन, परम आनंदता वरे ॥ २० ॥
॥ कलश ॥ ॥ इय सयल सुखकर गुणपुरंदर, सिद्धचक्र पदावली ॥ सवि लद्धिविझासिद्धिमंदर, भविक पूजो मन रुली ।। उवझायवर श्रीराजसागर, ज्ञानधर्म सुराजता ॥ गुरुदीपचंद सुचरण सेवक, देवचंद सुशोभता ।। २१ ॥
॥अथ काव्यम् ॥ द्रुतविलंबितवृत्तम् ॥ ॥ विमलकेवलभासनभास्कर, जगति जंतुमहोदय कारणम् ॥ जिनवरं बहुमानजलौवनम् , शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥१॥ इति काव्यम् ॥ आ काव्य प्रत्येक पूजादीठ कहेQ ॥
॥ स्नान करतां जगद्गुरु शरीरे, सकलदेवें विमल कलशनीरें ॥ आपणा कर्ममल दूर कीधा, तेणें ते विबुध ग्रंथे प्रसिद्धा ॥ २ ॥ हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आशीष पावे ॥ जिहां लगे सुरगिरि जंबु दीवो, अम तणा नाथ देवाधिदेवो ॥ ३ ॥
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