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नवपद पूजा.
तत्त्वरंगी, प्रथमभेदाभेदता ॥ सविकल्पने अविकल्प वस्तु, सकल शंसय छेदता ॥ १४ ॥
चारित्रपूजा ॥ ॥ चारित्रगुण वली वली नमो, तत्त्वरमण जसु मूलोजी॥ पररमणीयपणुं टले, सकलसिद्ध अनुकूलोजी ।। १५ ।। प्रतिकूल आश्रव त्याग संयम, तत्त्वथिरता दममयी ॥ शुचि परम खंति मुत्ति दश पद, पंच संवर उपचई ।। सामायिकादिक भेद धर्म, यथाख्यातें पूर्णता ॥ अकषाय अकलुष अमल उज्ज्वल, कामकश्मल चूर्णता ॥१६॥
तपपूजा ॥
॥ इच्छारोधन तप नमो, बाह्य अभ्यंतर भेदें जी । आतम सत्ता एकता, परपरिणति उच्छेदे जी ॥१७॥ उलालो। उच्छेद मर्म अनादेसंतति, जेह सिद्धपणुं वरे ॥ योगसंगें आहार टाली, भाव अक्रियता करे ॥ अंतर मुहूरत तत्त्व साधे, सर्व संवरता करी ॥ निज आत्मसत्ता प्रगटभावें, करो तप गुण आदरी ॥१८॥
॥ ढाल ॥ ॥ एम नवपद गुणमंडलं, चउ निक्खेप प्रमाणेजी ॥ सात नये जे आदरे, सम्यग्ज्ञानने जाणे जी ॥ १९ ॥ उलालो ॥ निर्धारसेंती गुणी गुणनो, करे जे बहुमान ए ॥ तसु करण ईहा तत्त्व रमणे, थाय निर्मल ध्यान ए ॥ एम शुद्धसत्ता भल्यो
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