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स्नात्र पूजा.
॥ त्रुटक ॥
॥ थरहरे आसन इंद्र चिंते, कोण अवसर ए बन्यो | जिन जन्म उत्सव काल जाणी, अतिही आनंद उपन्यो || निज सिद्धि संपत्ति हेतु जिनवर, जाणी भक्ते ऊमह्यो || विकसित वदन प्रमोद वधते, देव नायक गहगह्यो ।। १ ।।
॥ ढाल ॥
॥ तव सुरपतिजी, वंटानाद कराव ए ॥ सुरलोकेंजी, घोषणा एह देवराव ए ॥ नरक्षेत्रें जी, जिनवर जन्म हुओ अछे । तसु भगतें जी, सुरपति मंदर गिरि गछे ॥
॥ ऋटक ॥
॥ गच्छेति मंदर शिखर उपर, भवन जीवन जिन तणो ॥ जिन जन्म उत्सव करण कारण आवजो सवि सुरगणो ॥ तुम शुद्ध समकित थाशे निर्मल, देवाधिदेव निहालतां ॥ आपणां पातक सर्व जाशे, नाथ चरण पखालतां ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
॥ एम सांभली जी, सुरवर कोडी बहु मली ॥ जिनवंदनजी, मंदरगिरि सामा चली || सोहमपतिजी, जिन जननी घर आविया || जिन माताजी, वंदी स्वामी वधाविया ॥ ॥ क ॥
॥ वधाविया जिन हर्ष चहले, धन्य हुं कृतपुण्प ए ॥ त्रैलोक्य नायक देव दीठो, मुज समो कोण अन्य ए ॥ हे जगत जननी ! पुत्र तुमचो, मेरु मज्जन वर करी ॥ उत्संग तुमचे वलिय थापा, आनमा पुण्ये गरी ॥ ३ ॥
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