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स्नात्र पूजा.
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॥ ढाल ॥ ॥ सुर नायकजी, जिन निज कर कमलें ठव्या ॥ पंच रूपेंजी, अतिशय महिमायें स्तव्या ॥ नाटक विधिजी, तव बत्रीश आगल वहे ॥ सुर कोडीजी, जिन दर्शनने उम्महे ॥
॥ टक ॥ ॥ सुरकोडा कोडी नाचती वली, नाथ शुचि गुण गावती ॥ अप्सरा कोडी हाथ जोडी, हावभाव देखावती ॥ जयो जयो तुं जिनराज जगगुरु, एम दे आशीष ए ॥ अम्ह त्राण शरण आधार जीवन, एक तुं जगदीश ए ॥४॥
॥ ढाल ॥ ॥ सुरगिरिवर जी, पांडंक वनमें चिहुं दिशे ॥ गिरिशिल परजी, सिंहासन सासय वसे ॥ तिहां आणीजी, शक्रे जिन खोले ग्रह्या ॥ चौसठेजी, तिहां सुरपति आवी रह्या ॥
॥टक ॥ ॥ आविया सुरपति सर्व भक्ते, कलश श्रेणी बनाव ए॥ सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि, सर्व वस्तु अणाव ए ।। अच्चुअपति तिहां हुकम कीनो, देव कोडा कोडिने ॥ जिन मज्जनारथ नीर लावो, सवे सुर कर जोडीने ॥५॥
॥ ढाल ॥ सातमी॥ ॥ शांतिने कारणे इंद्र कलशा भरे ।। ए देशी ॥
॥ आत्मसाधन रसी देवकोडी हसी, उल्लसीने धसी क्षीरसागरदिशि ॥ पउमदह आदि दह गंगपमुहा नई, तीर्थजल अमल लेवा भणी ते गई ॥ १॥ जातिअड कलश .109
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