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स्नात्र पूजा.
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॥ स्नात्रपूजा प्रारंभः ॥ (पांखडी गाथा)॥ ढाल पहेली ॥ ॥ चउत्तिसे अतिसय जुओ, वचनातिसय जुत्त, सो परमेसर देखि भवि, सिंहासण संपत्त ॥ १ ॥
॥ ढाल ॥ ।। सिंहासन बेटा जग भाण, देखि भविक जन गुणमणि खाण ॥ जे दीठे तुज निर्मल नाण, लहिये परम महोदय ठाण ॥ कुसुमांजलि मेहेलो आदि जिणंदा, तोरां चरणकमल सेवे चोसठ इंदा ॥ कु० ॥ १ ॥ चोवीश वैरागी, चोवीश सोभागी, चोवीश जिणंदा ॥ कु० ॥ एम कही प्रभुना चरणे पूजा करी ये ॥
|| गाथा॥ ॥ जो नियगुण पज्जव रम्यो, तसु अनुभव एगंत ॥ सुह पुग्गल आरोपतां, जो तसु रंग निरत्त ॥ २ ॥
॥ढाल ॥ ॥ जो निज आतमगुण आणंदी, पुग्गल संगें जेह
गुण आणदी, पुरण अफंदी ॥ जे परमेसरनिज पदलीन, पूजो प्रणमो भव्य अदीन ।। कुसुमांजलि मेहेलो शांति जिणंदा । तो० ॥ कु० ॥३॥ एम कही प्रभुना जानुयें पूजा करीयें ॥
॥गाथा ॥ ॥ निम्मल नाण पयासकर, निम्मल गुण संपन्न ।। निम्मल धम्मोवएस कर, सो परमप्पा धन्न ॥ ३ ॥
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