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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नात्र पूजा विधि. ..........................mmmmmmmmmmmmmmmmmmm गुणगीत करवां, जय जय शब्द उच्चारवा, साहामीवात्सल्य करवू तथा यथाशक्ति दान देवू ॥ इति श्री स्नात्रपूजाविधिः समाप्तः ॥ ॥आरति ॥ दीपक ॥ लणजलविधिः प्रारभ्यते ॥ प्रभुथी अंतरपट करी, प्रभु सन्मुख बेशी आरति करनारने नव अंगें कुंकुमनां तिलक करवां. पछी एक थालमां स्वस्तिक करी, तेमां आरति, मंगल दीपक, जमणी बाजु राखी, त्यां आरतिमां वृत थोडं भरवू. अने मंगलदीपकमां घृत पूर्ण भरवू. पछी केशर, फूल, तंदुले करी, तेनी पूजा करवी. उपर कुंकुमना छांटा नांखी मंगल दीपक प्रगटाववो अने कपूर सलगाववो तेनो मंत्र कहे छे. ॐ अर्हते पंचज्ञानमहाज्योतिर्मयाय, वांतधतिने द्योतनाय, प्रतिमायै दीपो भूयात्सर्वदाहते ॥ १ ॥ एम भणी ॥ मंगलदीपक प्रगटावीने पछी ते मंगलदीपकथी आरति प्रगटावी, पछी दीवो नीचे मूकीने आरति उतारवी, तेवार पछी दीपक उतारे, पछी लूणनी काकरी लेइ " लूण उतारो जिनवर अंगे” इत्यादिक पाठ कही लूणनी गाथा भणवी, पछी बृहच्छांति कहेवी, ते न आवडे तो त्रण नवकार गणी, आ प्रमाणे श्लोक कहेवो ते ॥ श्लोक ॥ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यत्कृतं ॥ तत्सर्व क्षमया देव, क्षम त्वं परमेश्वर ! ॥१॥ एम कही चैत्यवंदन करवू ॥ इति आरति दीपक लूण जल विधिः॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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