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स्नात्र पूजा विधि.
कहीने धूप उखेववो. पछी मंगल दीपक करीने आ गाथाओ कहेवी
॥ अथ मंगलदीपक पूजा ॥ ॥ कोसंबी संठ्यस्सवि, पयाहिणं कुणइ मउलियपईवो ॥ जिणसोम दंसणोदिण, यररूव तुह नाह मंगल पईवो ॥१॥ भामीजंतो सुर सुंदरीहिं, तुहनाह मंगल पईवो ॥ कणयायलस्स निझिय, भाणुष्व पयाहिणं दितो ॥ २ ॥ मरगय सामल थालघरे विणु, कोमल सरलिहि करिहिं करेविणु, जे उतारइ मंगल पईवो, सो नर होइ तिलोय पईवो ॥३॥ ए गाथा कहीने मंगलप्रदीप करवो, पछी रकेबीमा कपूर धरी, आरतिमां बत्ती सलगावीने मुखथकी आ गाथाओ कहेवीः
॥ अथ आरति गाथा ॥ ॥ जं मरगय मणि गडिय, विसाल थाल माणिक्क मंडिय पईवो ।। ण्हवण यरकुरु खित्तं, भमउ जिण आरत्तियं तुम्हें ॥ १॥ आरत्तिअं नियत्थह, जिणस्स धूव किसणागरुच्छायं ॥ पासेसु भमउ निज्जिय, संगमय विभिन्नदिठिव ॥२॥ पसणेयवो भवंतर, समज्जियंकम्मरेणु संघायं ॥ आरत्तिय मंगलग्गा, उच्छलंति सलिलधारा ॥ ३॥ एवी रीते आरति करवी ॥ इति संक्षेप आरतिविधिः ॥
॥ पछी उत्तरासंग करी, चैत्यवंदन करखु, अने अष्ट प्रकारें पूजा करवी. कदाचित् अष्टप्रकारें पूजा न कराय तो शेष फल फूलने नैवेद्य जे होय, ते एमज चढावी देवू, पछी
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