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स्नात्र पूजा.
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॥ ढाल ॥ ॥ लोकालोक प्रकाशक नाणी, भविजन तारण जेहनी वाणी ॥ परमानंदतणी नीशानी, तसु भगते मुज मतिय ठहराणी ॥ कुसुमांजलि मेहेलो नेम जिगंदा, तो० ॥ कु० ॥ ३ ॥ एम कही प्रभुना बे हाथे पूजा करी ये ॥
॥गाथा ॥ ॥ जे सिज्झा सिन्झंति जे, सिझंसंति अणंत ॥ जसु आलंबन ठविय मण, सो सेवो अरिहंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल ॥ ॥ शिव सुख कारण जेह त्रिकालें, समपरिणामें जगत निहाले ॥ उत्तम साधन मार्ग देखाडे, इंद्रादिक जसु चरण पखाले ॥ कुसुमांजलि मेहेलो पास जिणंदा ॥ तो० ।। कु० ॥४॥ एम कही प्रभुना खंभायें पूजा करी यें ॥
॥गाथा ॥ ॥ समदिठी देस जय, साहु साहुणी सार ॥ आचारिज उवझाय मुणि, जो निम्मल आधार ॥ ५ ॥
॥ढाल ॥ ॥ चउविह संघे जे मन धार्यु, मोक्षतj कारण निरधार्यु ॥ विविह कुसुम वर जाति गहेवी, तसु चरणे पणमंत ठवेवी । कुसुमांजलि मेहेलो वीर जिणंदा । तो० ॥ कु० ॥ ६ ॥ एम कही प्रभुने मस्तकें पूजा करीये ।। इति पांखडी गाथा ॥
॥ वस्तुच्छंद ।। ॥ सयल जिनवर सयल जिनवर, नमिय मनरंग कल्ला
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