________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८४२ श्री महो० देव० कृत अतीत जिन चोविशी.
अव्यावाध स्वगुणनी पूरण रीत जो, कर्ता भोक्ता भावे रमणपणे धरेरे लोल॥ सहज अकृत्रिम निर्मल ज्ञानानंदजो, देवचंद्र एकत्त्वे सेवनथी वरेरे लोल ॥ ज०॥७॥
॥ अथ सप्तदशमा श्री अनीलजिन स्तवन ।।
॥ देखो गति देवनी रे ॥ ॥ देशी ॥ स्वारथ विणु उपगारता रे, अदभुत अतिशय रिद्धि ॥ आत्म स्वरूप प्रकाशना रे, पूरण सहज समृद्धि ॥ अनील जिन सेवीपरे ॥ नाथ तुमारी जोडि न को त्रिहुं लोकमेंरे, प्रभुजी परम आधार अछो भवि थोकनेरे॥१॥ परकारज करता नहिरे, सेव्या पार न हेत॥ जे सेवे तनमय थईरे, ते लहे शिव संकेत ॥ अ० ॥ २ ॥ करता निज गुण वृत्तितारे, गुण परिणति उपभोग ॥
For Private And Personal Use Only