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४. श्री महोदेव कृत अतित जिन चोविशी.
-namramnanimammy
पर त्यागी गुण एकतत्त्वता, रमता ज्ञानादिक भावरे ॥ स्वस्वरूप ध्याता.थई, पामे शुचि क्षायिक भावरे ॥ करो० ॥५॥ गुण करणे नव गुण प्रगटता, सत्तागत रस थीती छेद रे॥ संक्रमण उदय प्रदेशथी, करे निर्झरा टाले खेद रे ॥ करो० ॥६॥ सहज स्वरूप प्रकाशथी, थाए पूर्णानंद विलासरे ॥ देवचंद्र जिनराजनी,
करज्यो सेवा सुख वासरे ॥ करो० ॥ ७ ॥ ॥अथ षोडषम श्री नमिश्वर स्वामी जिन स्तवन ॥
॥ हो पोउ पंखोडा ॥ ए देशी॥ जगत दिवाकर श्री नमिश्वर स्वामजो, तुज मुख दोठे नाठी भूल अनादिनोरेलो॥ जाग्यो सम्यग् ज्ञान सुधारस.धामजो, छांडी दुर्जय मिथ्यानींद प्रमादनीरे लो॥ज०॥१॥
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