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८३४ श्री महो० देव० कृत अतित जिन चोविशी.
आणा रंगे चित्त धरीजे,
देवचंद्र पद शीघ्र वरीजे ॥७॥ ॥ अथ त्रयोदशम श्री सुमतिजिन स्तवन ॥
॥ कान्हैयालाल ए देशी ॥ प्रभुस्यूं इस्यूं विनवूरे लाल, मुज विभाव दुःख रीतरे साहविया लाल। तिन कालना ज्ञेयनीरे लाल, जाणो छो सहु नीतिरे साहबिया लाल॥प्रभु०॥१॥ ज्ञेय ज्ञानस्युं नवि मिलेरे लाल, ज्ञान न जाये तथ्थरे । सा०॥ प्राप्त अप्राप्तमेयनेरे लाल जाणो जे जिम जथ्थरे ॥ सा०॥प्रभु० ॥२॥ छति परजाय जे ज्ञाननारे लाल, ते तो नवि पलटायरे ॥ सा०॥ ज्ञेयनो नवनवि वर्तनारे लाल, सवि जाणे असहायरे ॥ सा०॥प्र०॥३॥ धर्मादिक सहु द्रव्यनारे लाल, प्राप्त भणी सहकाररे । साहि० ॥ रसनादिक गुण वर्त्ततारे लाल, निज क्षेत्रे ते धाररे॥सा०॥प्र०॥४॥
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