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दशम श्री सुतेज जिन स्तवन.
निज तत्त्व रसे जे लोनी, बीजे किणही नवि कीनी लाल ॥ अ० ॥४॥
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संग्रह नयथी जे अनादि,
पण एवंभूते सादि लाल ॥ अ० ॥
जेहने बहुमाने प्राणी,
पामे निज गुण सहनाणी लाल ॥ अ० ॥ ५ ॥
थिरताथी थीरता वाधे,
साधक निज प्रभुता साधे ॥ लाल ॥ अ० ॥
प्रभु गुणने रंगे रमता,
ते पामे अविचल समता ॥ लाल ॥ अ० ॥६॥ निज तेजे जेह सुतेजा,
जे सेवे धरि वहु हेजा लाल ॥ अ० ॥
शुद्वालंबन जे प्रभु ध्यावे,
ते देवचंद्र पद पावे लाल ॥ अ० ॥ ७ ॥
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॥ अथ एकादशम श्री स्वामीप्रभोजिन स्तवन ॥
रहो रही रहो रहो बालहा ॥ ए देशी ||
नमि नमि नमि नाम वीनवुं, सुगुणा स्वानी जिणंद नाथरे ॥
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