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श्री महो देव० कृत अतित जिन चोविशी.
जिनचंद्रनी हो जे भक्ति एकत्वके, देवचंद्र पद कारणो ॥ ५॥ ॥ अथ दशम श्री सुतेज जिन स्तवन । अति रुडीरे अति रुडी जिनराजीनी थिरता अति रुडी ॥ ए आंकणी ॥ सकल प्रदेश अनंती, गुण पर्याय शक्ति महंती लाल ॥ अ०॥ तसु रमणे अनुभववंती, पर रमणे जे न रमंती लाल ॥ अति० ॥१॥ उत्पाद व्यये पलटंती, ध्रव शक्ति त्रिपदी संतो लाल ॥१०॥ उतपादे उतपतमंती, पूरव परिणति व्ययपंती लाल ॥१०॥२॥ नव नव उपयोगे नवली, गुण छतिथी ते नित अचली लाल ॥०॥ परद्रव्ये जे नवि गमणी, क्षेत्रांतरमांहि न रमणी लाल ॥१०॥३॥ अतिशय योगे नदि दीपे, परभाव भणों नवि छी लाल ॥ अ०॥
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