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नवम श्री दामोदर जिन स्तवन.
भवभमता हो भविजन आधार के, प्रभु दरशन सुख अनुपमो ॥ आतमनी हो जे शक्ति अनंतके,
तेह स्वरुप पदे धा ॥ पारिणामिक हो ज्ञानादिक धर्म के, स्वार्यपणे वया ॥ ३ ॥ अविनाशी हो जे आत्मानंद के, पूर्ण अखंड स्वभावनो || निज गुणनो हो जे वर्त्तन धर्म के, सहज विलासी दावनो ॥ तस भोगी हो तुं जिनवर देव के, त्यागी सर्व विभावनो ॥ श्रुतज्ञानी हो न कही शके सर्व के, महिमा तूज प्रभावनो ॥ ४ ॥ निःकामी हो निकषाई नाथ के साथ होजो नित तुम तणो ॥ तुम आणा हो आराधना शुद्धके, साधुं हुँ साधकपणो ॥ वीतरागथी हो जे राग विशुद्ध के, तेहीज भवभय वारणो ॥
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