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८२६ श्री महो. देव. कृत अतित जिन चोविशी.
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॥ अथ नवम श्री दामोदर जिन स्तवन ॥ ॥ मोरा साहेब हो श्री शीतल नाथके ॥ ए देशी ।।
सुप्रतीते हो करि थिर उपयोग के, दामोदर जिन बंदीये। अनादिनी हो जे मिथ्या भ्रांतिके, तेह सर्वथा छंडीये ॥ अविरति हो जे परिणति दुष्ट के, टालो थिरता साधोए। कषायनी हो कसमलता कापी के, वर समता आराधीए ॥१॥ जंबूने हो भरते जिनराज के, नवमा अतित चोवीशीये ॥ जस नामे हो प्रगटे गुण राशि के, ध्याने शिव सुख विलसीये ॥ अपराधी हो जे तुजथी दूर के, भूरि भ्रमण दुःखना धणी ॥ ते माटे हो तुज सेवा रंग के, होजो ए इच्छा घणी ॥२॥ मरुधरमें हो जिम पुरतरु लुंबके, सागरमें प्रवहण समो॥
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