________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अष्टम श्री दत्तप्रभु स्तवन.
भाव रोगना वैद्य जिनेश्वरु, भावौषध तुज भक्ति ॥ जि० ॥ देवचंद्रने श्री अरिहंतना,
छे आधार ए व्यक्ति ॥ जि० ॥ से० ॥७॥
८२३
॥ अथ अष्टम श्रीदत्तप्रभु स्तवन ॥
॥ राग धमाल ॥
जिन सेवन पाईये हो, शुद्धतम मकरंद ॥ ए आंकणी ॥ तत्त्व प्रतीत वसंत ऋतु प्रगटी, गई सिसिर कुप्रतीत ॥ ललना ॥ दुरमती रजनी लघु भई हो,
सदबोध दिवस वदीत ॥ ललना ॥ जिन० ॥ १ ॥
साध्य रुचि सुसखा मिलीहो, निज गुण चरचा खेल || ल०
बाधक भावकी नंदना हो,
बुध मुख गारिको मेल ॥ ० ॥ जि० ॥२॥ प्रभु गुण गान सुछंद हो,
वाजित्र अतिशय तान ॥ ल०
For Private And Personal Use Only
शुद्ध तत्त्व बहुमानता,
खेलत प्रभु गुण ध्यान ॥ २० ॥ जि० ॥३॥