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८१४ श्री महो० देव० कृत अतित जिन चोविशी.
प्रति समये व्यय उत्पादि, ज्ञेयादिक अनुगत सादि ।सु० ४॥ अविभागो पर्यय जेह, समवायो कार्यना गेह ॥ ज नित्य त्रिकाली अनंत, तसु ज्ञायक ज्ञान महंत ॥सु० ५॥ जे नित्य अनित्य स्वभाव, ते देखे दर्शन भाव ॥ सामान्य विशेषनो पिंड, द्रव्यार्थिक वस्तु प्रचंड ॥सु०६॥ ईम केवल दरशन नाण, सामान्य विशेषनो भाण ॥ द्विगुण आतम श्रद्धाए, चरणादिक तसु व्यवसाए ॥सु० ७॥ द्रव्य जेह विशेष परिणामी, ते कहीए पजव नामी ॥ छती सामर्थ्य दुभेदे, पर्याय विशेष निवेदे ॥सु० ८॥ तसु रमणे भोगनो वृंद, अप्रयासी पूर्णानंद ॥
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