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८१० श्री महो० देव० कृत अतित जिन चोविशी.
करता पद प्रवृत्ति प्रकाश, अस्ति नास्तिरे कांई सर्वनो भासरे ॥जि०४॥ सामान्य खभावनो वोध, केवल दर्शन शोध ॥ सहकार अभाव रोध, समयंतररे कांई बोध प्रबोघरे ।जि० ५॥ कारक चक्र समग्ग, ते ज्ञायक भाव विलग्ग ॥ परमभाव संसग्ग, एक रीतेरे कांई थयो गुण वग्गरे ॥जि०६॥ इम सालंबन जिन ध्यान, भवि साधे तत्त्व विधान ॥ लहे पूर्णानंद अमान, तेहथी थायेरे कोई शीव इशानरे ।जि०७॥ दास विभाव अपाय, नासे प्रभु सुपसाय ॥ जे तन्मयताए ध्याय, सही तेहनेरे देवचंद्र पद थायरे ॥जि०८॥
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