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॥ अथ श्री महोपाध्याय देवचंद्रजी कृत अतित जिन चोविशी ॥
॥अथ प्रथम तीर्थंकर श्रीकेवलज्ञानी जिनस्तवन ॥
नामे गाजे परम आल्हाद, प्रगटे अनुभव रस आस्वाद || तेथी थाये मति सुप्रसाद, सुणतां भाजेरे कांई विषय विषादरे, जिणंदा ताहरा नामथी मन भीमो ॥१॥
क्षेत्र असंख्य प्रदेश,
अनंत पर्याय निवेश ॥
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जाणग शक्ति अशेष,
तेहथी जाणेरे कांई सकल विशेषरे ॥ जि० २ || सर्व प्रमेय प्रमाण,
जस केवल नाण पहाण ॥
तिणे केवलनाणी अभिहाण,
जस ध्यावेरे कांई मुनिवर झाणरे ॥ जि० ३ ॥ ध्रुव परिणति छति जास, परिणति परिणमे त्रिक राश ॥
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