________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
७९६ श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवनं.
॥ अथ दशम श्रीविशालजिन स्तवनं ॥
|| प्राणी वाणी जिनऩणी || ए देशी || देव विशाल जिणंदनी, तमें व्यावोतन्त्र समाधि रे ॥ चिदानंद रस अनुभवी, सहज अकुल निरुपावि रे || १ || स० ॥ अरिहंत पद बंदीयें गुणवंत रे || गुणवंत अनंत महंत स्तवो, भवता रणो भगवंत रे ॥ ए आंकणी || भव उपाधि गद डालवा, प्रभुजी छो वैद्य अमोघ रे || रत्ननयि औपच करी, तमें तार्या भविजन ओ रे ॥ २ ॥ ० ॥ ० ॥ भव समुद्र जल तारवा निर्यामक सम जिनराज रे || चरण झहाजे पामी यें, अक्षय शिवनगरनुं राज रे || ३ || अ || अ || भव अटवी अति गहनथी, पारंग प्रभुजी सत्यवाह रे । शुद्धमार्ग दर्शकपणे, योग क्षेमंकर नाह रे ॥ ४ ॥ यो० ॥ अ० ॥ रक्षक जिन छकायना, वली मोहनिवारक स्वामी रे || श्रमण संग रक्षक सदा, तेणें गोप ईश अभिराम रे ॥ ५ ॥ ते || अ || भाव अहिंसक पूर्णता, महणता उपदेश रे || धर्म अहिंसक नीपनो, माहण जगदीश विशेष रे || ६ || || ॐ || पुष्ट कारण अरिहंतजी, तारक ज्ञायक मुनिचंद रे || मोचक सर्व विभावथी, झोपावे मोह अरिंद रे ॥ ७ ॥ झ ॥ ॐ ॥ कामकुंभ सुरमणि परें, सहेजें उपगारी थाय रे ॥ देवचंद्र सुखकर प्रभु, गुण गेह अमोह माय र ॥ ८ ॥ गु० ॥ ॥ इति श्री विशालजिन स्तवनम् ॥
13
警到變
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only