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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७९४ श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवन. ॥ अथ अष्टम श्री अनंतवीर्यजिन स्तवनं ॥ , || चरणाली चामुंडा रंग चडे || ए देशी ॥ अनंतवीरज जिनराजनो, शुचि वीरज परम अनंत रे || निज आतम भावें परिणम्यो, गुणवृत्ति वर्तनात रे || १ | मन मोधु अम्हारुं प्रभु ॥ ए आंकणि । यद्यपि जीव सह सदा, वीर्यगुण सत्तावंत रे || पण कमें आवतचल तथा बाल बावक लहंत रे || २ || म० || अल्पवीर्य क्षयोपशम अल्छे, अविभाग वर्गणा रूप रे || गुण एम असंख्ययी, थाये योग स्थान स्वरूप रे ॥ ३ ॥ ० ॥ मुहम निगोदी जीवथी, जावसन्नीवर पज्जत रे || योगनां टाण असंख्य छे तरतम मोहें परायत्त रे ॥ ४ ॥ म० ॥ संयमने योगें वीर्य ते तुम्हें कीवो पंडित दक्ष रे ॥ साव्य रसी सावक पणे, अभिसंधि रम्यो निज लक्ष रे ॥ ५ ॥ ० ॥ अभिसंधि अवधक नीपने, अनभिसंधि अववय थाय रे || स्थिर एक तत्त्वता वरततो, ते क्षायिक शक्ति समाय रे || ६ || म० ॥ चक्रभ्रमणन्याय सयोगता, तजी की अयोगी धाम रे || अकरण वीर्य अनंतता, निजसहकार अकाम रे || ७ ॥ ० ॥ शुद्ध अचल निजवीर्यनी, निरुपाधिक शक्ति अनंत रे || ते प्रगटी में जाणी सही, तिणें तुमहीज देव महंत रे ॥ ८ ॥ म० तुझ ज्ञानें चेतना अनुगमी, मुझ वीर्य स्वरूप समाय रे || पंडित क्षायिकता पामशे, ए पूरणसिद्धि उपाय रे ॥ ९ ॥ ० ॥ नायक तारक तूं धणी, सेवनथी आतम सिद्धि रे || देवचंद्र पद संपजे, वर परमाणंद समुद्धरे ॥ १० ॥० ॥ २५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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