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श्रीदेवीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवनं ७९३
॥ अथ सप्तम श्री ऋषभाननजिन स्तवनं ॥
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॥ वारी हुं गोडी पासने || ए देशी || श्री ऋषभानन बंदिये, अचल अनंत गुणवास || जिनवर || क्षायिक चारित्र भोगयी, ज्ञानानंद विलास ॥ ज० ॥ १ ॥ श्री० || जे प्रसन्न प्रभु मुख यहे, तेहीज नयन प्रधान || जि० ॥ जिनचरणे जे नामीयें, मस्तक तेढ़ प्रमाण || जि० ॥ २ ॥ श्री० ॥ अरिहापदकज अरचियें, स दहीजें ते हृत्य || जि० ॥ प्रभुगुण चिंतनमें रमे, तेहज मन सुकयत्थ || जि० ॥ ३ श्री० ॥ जाणो को सह जीवनी, साधक बालक भांत || जि० ॥ पण श्रीमुखी सांभली, मन पामे नीरांत || जि० ॥ ४ ॥ श्री० ॥ तीन काल जागंग मणी, कहिये वारंवार || जि० ॥ पूर्णानंदी प्रभु तं व्यान ते परम आधार || जि० ॥ ५ ॥ श्री० || कारणयी कारज हुवे, एश्री जिनमुख वाण ॥ जि० ॥ पुष्टहेतु मुज सिद्धिना, जाणी किव प्रमाण || जि० ॥ ६ ॥ श्री० ॥ शुद्ध तत्त्व निज संपदा, ज्यां लगे पूर्ण न थाय || जि० ॥ त्यां लगें जग गुरु देवना, सेवुं चरण सदाय ॥ जि० ॥ ७ ॥ श्री० ॥ कारज पूर्ण कर्या विना, कारण केम मुकाया || जि० ० || कारज रुचि कारणतणा, सेवे शुद्ध उपाय ॥ जिं० ॥ ९ ॥ श्री ॥ ज्ञान चरण संपूर्णता, अव्याबाध अमाय || जि० ॥ देवचंद्र पद पामीयें, श्री जिनराज पसाय ॥ जि० ॥ ९ ॥ श्री० ॥ इनि श्री ऋषभाननजिन स्तवनं ॥
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