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दे चौ. बाल सुविहित खरतर गच्छवरू, राजसार उवझायो जी ।। ज्ञानधर्म पाठक तणो,
शिष्य सुजस सुखदायो जी ॥ चो० ॥८॥ __ अर्थ--सुविहित कहेता पंचांगी प्रमाण रत्नत्रयीनी हेतु केतां कारण एहवी जेहनी समाचारी, एहवो जे खरतरगच्छ ते मध्ये वर केतां प्रधान सर्व शास्त्र निपुण मरुस्थल विषे अनेक जिनचैत्यप्रतिष्टा कारक आवश्यकोद्धार प्रमुख ग्रंथोना कर्ता एवा महोपाध्याय, श्रीराजसारजी थया, तेहना शिष्य श्रीज्ञानधर्म उपाध्याय, न्यायादिक ग्रंथाध्यापक, जेणे साठ वर्ष पर्यंत जिव्हाना रस तजी शाक जाति तजी, ने संवेगवृत्ति धरी, तेमना शिष्य रूडा यशना धणी, रावना देवावाला एहवा ॥८॥ इति अष्टम गाथार्थः ।।
दीपचंद्र पाठक तणा, शिष्य स्तवे जिनराजो जी ।। देवचंद्र पद सेवा , पूर्णानंद समाजो जी ।। चो० ॥ ९ ॥
अर्थः--तथा जेणे श्री शजय तीर्थ उपर शिवासोमजी कृत चोमुखनी अनेक विंब प्रतिष्टा करी तथा पांच पांडवना बिंबनी प्रतिष्टा करी, तथा समोसरण चैत्य तथा श्रीकुंथुनाथ चैत्य प्रतिष्ठा करी, श्रीराजनगरे सहस्रफणापार्थ प्रभुनी प्रतिष्ठा
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