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श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवनं. ७८५
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करी, एहवा उपाध्याय श्रीदीपचंद्रजी, तेहना शिष्य पंडित देवचंद्रगणि, तेणें ए चोवीश प्रभुनी स्तवना भक्तिवशें करी, पोतानी भक्ति परिणति महानंद हेतु छे, एहवा गुणना नाथ, देवचंद्र पद पूर्णानंद जे सिद्ध अव्याबाध आनंदनो समाज केतां समुदाय ते पामे, ए जिनभक्ति ते मोक्षनो परमोपाय छे ॥ ९॥ इतिश्री चोवीश जिनस्तुतिनो बालावबोध संपूर्ण ॥ ॥ इति श्री देवचंद्रजी माहाराज कृत बालावबोध सहित
चतुर्विंशति जिनस्तवनानि संपूर्णानि ॥
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