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त्रयाविश श्री पाश्वनाथजिन स्तवनं. ७७३ जे आज केतां जे दिवसें प्रभुने भेट्यो, ते दिवसें माहरु सिद्धिसाधकपणुं सध्यु ॥ ७॥ इति सप्तम गाथार्थः ॥
आज कृतपुण्य धन्य दोह माहरो थयो, आज नर जन्म में सफल भाव्यो । देवचंद्र स्वामी ओवीशमो वंदीयो, भक्तिभर चित्त तुझ गुण रमाव्यो॥स०॥८॥
अर्थ:---आज जे वेलायें अनुष्ठानादिक दोष रहित आत्मा प्रभुभक्तं परिणम्यो, ते दिवस कृतपुण्य केतां पुण्योदय थयो, ए दिन धन्य थयो, ए दिनें जिनभक्ति रत्त अध्यवसाय थवे ए नर जन्म सफलपणे विचायो जे माहरो ए जन्म सफल छे, जे में नीरागी, निस्पृही, परमगुणी, सर्वज्ञ, सर्वदशी देव, श्रीपार्श्वनाथस्वामी वीशमा तीर्थकर तेने भेट्यो, वांद्यो, स्तव्यो, अने तेहनी भक्तिभरने विषे चित्त केतां मन रमाव्यु एटले पुद्गलरमणता तजी, श्रीअरिहंतगुणनी रमणताएं मन रमाव्युं तेहीज दिन कृतार्थ कृतपुण्य सफल मानवो, ए दिन लेखानो जाणवो, सर्व देवमांहे चंद्रमा समान अथवा स्तुतिकर्ता जे देवचंद्र ते एहवो लाभ पाम्यो ॥८॥ इति श्रीपार्श्वनाथजिन स्तवनं ॥
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