________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अध्यात्मगीता.
४५५
कोइ जोरावर नथी जे खेंची ले, वो बोलख्यो तेवारे पोतानी ऋद्विनो भयपण टळीज गयो. ॥ २१ ॥
आतम सर्व समान विधान महा सुख कंद | सिध्धतणा साधम्र्मी सत्ताये गुणवृंद || जेह स्वजाति तेहथी कोण करे वध बंध | प्रगट्यो भाव अहिंसक जाणे शुध्ध प्रबंध ॥ २२॥
अर्थः-- आत्म के० आत्मा सर्व सरीखा छे, कोइनो न्यून्याधिक छे नहीं, निधान के निचे महासुखरूप छे, जे सुखनी किहांइ उपमा नथी ते सुख सिद्ध भगवान्ने प्रगट युं छे अने संसारी जीवने ए सुख सत्तामा रधुं छे, वीजी परे अर्थ सर्व जीव सत्ताये एक सरिखा सामान्यपणे जाणवा. निश्चय नयने मते सर्व जीव ज्ञानदर्शन चारित्ररूप निधाने करी युक्त छे. निश्चयी सब जीव सत्ताए महासुखनां कंदमूळ छे, सिद्ध के० सिद्धना जीव तथा संसारी जीव सरिखा साधर्मीपणे गणे छे, पण सत्ताये बेना गुण बराबर छे, तेवारे पोतानी बराबरीमा सकळ जीव थया, तथा बीजी रीते निश्चयनययी सर्व जीवनो धर्म सत्ताये सिद्ध समान एक सरीखो छे, जेनो सरस्वो धर्म होय तेने साधर्मी कहिये, सर्व जीव सत्ताये ज्ञानादि गुणना वृंद-समूह छे, तेबारे सर्व जीव एक जातिना थथा, कुटुंब थयुं तेवारे तेनी हिंसा किम थाथ ? तेवारे तेहने दुःख किम देवाय ? तेहनो वध बंध कुण करे ? एवी रीते कमारे दया प्रणमे वेवारे भाव अहिंसकपणं प्रगट थाय. तेवारे जिनशाशन शुद्ध स्वरूपनो प्रबंध जाण्यो, ते ज्ञाता कहिये
१७
For Private And Personal Use Only