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अष्टादश श्री अरनाथजिन स्तवनं.
निमित्त हेतु जिनराज, समता अमृत खाणी ॥ प्रभुअवलंबन सिद्धि, नियमा एह वाणी ॥१२॥
अर्थः-हवे आत्माने सिद्धतारूप कार्य करतां निमित्त कारण श्रीजिनराज वीतराग छे, ते वीतराग सर्वज्ञ केहवा छे, समतारूप अमृतनी खाण छे, इष्प अनिष्टता रहित समताना धणी छे, शुद्ध चरित्र परिणाम तेहीज अमृत छे, तेहनी खाण छे, एहवा प्रभु परमेश्वर परम दयाल, परमात्मा, शुद्धतत्वरूप भोगी, पूर्णानंदी, चिदानंद जे श्रीअरनाथ प्रभु तेहने अवलंबवे पोतानो भासन प्रभुना ते गुण जाणवाने जोडी एम अनंता गुण ते सर्वगुणना भासननी रीझ तथा ते उपर बहुमान एहवे आलंबने रहे, तेथी नियमा सिद्ध निवारण थाय एम आगममां वखाण्यो छे, एहीज मोक्षनो उपाय छे. ए निमित्तकारण का ॥ १२ ॥ इति ॥ पुष्ट हेतु अरनाथ, तेहने गुणथी हलीयें ॥ रीझ भक्ति वहुमान, भोगध्यानथो मलोयें ॥१३॥ __ अर्थः-माटे पुष्टकेतां नियामक हेतुकेतां कारण ते जिनराज श्री अरनाथ प्रभु तेहना गुण जे केवल ज्ञान, अनंतानंदरूप तेहथी हलीयें केतां आपणो आत्मा तेदिसे जोडीयें, प्रगटगुणीना गुणथी आपणी चेतना जोडवी, रीझ केतां रागनीमग्नता, भक्तिकेतां सेवना, बहुमान, आदर, मोटाइ, भोगकेतां आस्वादन, 'व्यानकेतां चित्तनी एकाग्रता, ए श्री अरनाथ प्रभुना गुणनी करीने श्रीप्रभुथी एकत्वपणे 92
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