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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षोडश श्री शांतिजिन स्तवनं. ॥ || गाथा || आगारोभिप्पाओ बुद्धिकिरियाफलं च पाएणं || जह विसइ ठवणाए, न तहा नामे न दबिंदो ॥ १ आगारोच्चियमई, सवत्थुकिरियामिहागाई || आगारमयं सवं, जमणागारा तया नत्थि ॥ २ ॥ इत्यादि तेमाटे नाम तथा थापना ए वे निक्षेप उपगारी छे, अने मोक्षसाधवामां संवर निर्जरा करवाने तो बंदकनो भाव जे छे ते ग्रहवो, केम जे श्री अरिहंतनो भावनिक्षेपो तो श्री अरिहंतने विषेज छे, ते जो परजीवने तारे तो कोइ जीवन संसारमां रहें पडेनहीं, तेतो थातो नयी, परंतु आपणो भाव अरिहंतालंबनी थाए, तो मोक्षमार्ग लहियें, तेमाटे प्रभुनी थापना तथा नामना निमित्त पण साधकनो भाव समरे, तेथी नाम तथा थापना ए बेज उपगारी छे, बलीसमवसरणमां बिराजमान श्री अरिहंत तेनुं पण नाम तथा आकार, सर्व जीवने उपगारी थाय छे, तेहीज छद्मस्थने ग्राह्य छे, अवलंबियें तेमाटे नाम तथा थापना प्रमाण छे, निमित्तालंबी रूपी ग्राहकने श्रीजिन थापना ते पुष्ट निमित्त छे || इति षष्ठ गाथार्थः ॥ ६ ॥ ठवणा समोसरणे जिनसेंति ॥ वा० ॥ जो अभेदता वाधी रे ॥ ए आत्माना स्वस्वभावगुण, व्यक्तयाग्यता साधी रे ॥ भ० ॥ ७॥ For Private And Personal Use Only ७०७ अर्थः- ते माटे टवणा समोसरणें एटले मूलगो समोसरण तो श्री जिनराज विचरता हता ते कालें तो उ माहरो जीव, कोई गत्यंतरां हतो, ते हृमणां जा भवमां समोसर
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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