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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . दे० चो० बा० merememmmmmmmmmmmmmm णनी थापना करी, तिहां जिनमुद्रा देखीने, जिनराजना गुणावलंबी चेतना करी पछी ते सेवना करतां प्रभुजी सिद्धावस्थारूप परम अनंतगुणीना स्वरूपयी जे माहरी चेतनानी अभेदता एकत्वपरिणामता ते वाधि केतां वधी, तेवारें ए आत्माने एहवो अनुमान सध्यो, जे तत्वीदेवथी अभेदपणुं बहुमानपणे भल्युं तो एम जाणु छ जे ए माहारो आत्म स्वस्वभाव अनंत ज्ञानादिपूर्णानंद गुणनी व्यक्त केतां प्रगटतानुं थर्बु तेहनी योग्यता साधि, एम अनुमाने निरधारी, एटले ए जीव सदा सर्वदा विषयरंगी हतो, ते तत्त्वी प्रभु निर्विषयीने रंगें रम्यो, तो कोइक अवसरे स्वरूपरमणी थाशे एहवं अनुमान थयुं जो कारणथी अभेद थयो, तो कारज नीपजाबशे ए पलटवापणं अनंते काले न थयुं हतुं ते थयुं, तो ए द्रव्यमां पलटवानी योग्यता छे, अनादिनी चालथी पलटवु ए भव्यतापणाना लिंगर्नु अनुमान तो थाय छे, एटले भव्यपणं जणाय छे, ए भक्तिनी बहुलतायें हर्षनें वचन छे ॥७॥ भलुं थयु में प्रभुगुण गाया ॥ वा०॥ रसनानो फल लीधो रे ॥ देवचंद्र कहे माहारा मननो, सकल मनोरथ सीधो रे ॥ भ० ॥८॥ अर्थः-माटे हे प्रभु !!! आज मुजने भलं केतां अत्यंत रूडं थयुं, जे में प्रभु श्रीसोलमा शांतिनाथ परमात्मा परम शांतरसमयी तेना गुणनी स्तवना करी, तेथी में माहरी रसना केतां रसेंद्रि जे जिव्हा तेनुं रुडुंफल लीवू एटले रसनानुं For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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