________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दे० चो० बा०
. अर्थः-जेवारें शुद्ध पुगल संगरहित निःप्रयास निजभाव केतां आत्मभावनो भोगी थयो, तेवारें आत्मप्रदेशे अन्य केतां पुद्गलकर्म तथा रागादिकनुं रक्षण केतां राखवो नथी, एटले स्वरूप ग्राहक चेतनानुं वीर्य थाये, तेवारे पुद्गल कर्म आत्मप्रदेशे संबंधीपणे रहे नहीं, सर्व पुद्गलखरीने आत्मा निःकर्मा थाय, तेवारे एक सर्वसंग रहित, असहायी, निद्वंद्व उत्सर्गनी शक्ति सहित व्यक्तता केतां प्रगटता निरावरणपणं पामे ।। ॥ इति नवम गाथार्थः ॥ ९ ॥ तेणें मुझ आतमा तुझथकी नीपजे, माहरी संपदा सकल मुझ संपजे॥ तेणें मन मंदिरे धर्म प्रभु ध्याइयें, परमदेवचंद्र निज सिद्धि सुख पाइयें ॥ १०॥
अर्थः तेथी हे देव हे श्रीवीतराग ! तुमारे निमित्ते माहारो तत्त्व नीपजे, बीजो कोई उपाय देखातो नथी, माहरा आत्मानुं सिद्धपणुं ते ताहारा स्वरूपने अवलंबे नीपजे, माहरो अनंतगुणपर्यायरूप स्वकर्तीपणुं स्वभोक्तापणुं स्वरूप ऐश्वर्य सर्व जे मोहाधीन कर्मावृत्त छे, ते मुने संपजे, एटले हुँ माहारी अरूपी सत्तागत तत्त्वसंपदानो धणी तथा भोगी, अविनाशीपणे थाऊं, ए प्रभुजीनो परम उपकार जाणं, ते कारणे मनमंदिरने विषे श्रीधर्मनाथ प्रभुने ध्याइएं, क्षण एक बीजी उपाधिचिंतविएं नहीं, ए प्रभुना गुण तथा उपगारनुं बहुमाने ध्यान करिये, नवा साधकने एहिज आधार छे, तेवारे परम उत्कृष्ट देव जे स्वरूपरमणी मुनि तेहमां चंद्रमा समान जे
For Private And Personal Use Only